BATHU KI LADI

आख़िर क्यों 8 महीने पानी में डूबा रहता है ये मंदिर पांडवों ने बनाई थी यहां स्वर्ग की सीढ़ियां

भारत चमत्कारों का देश माना जाता है. यहां पर कई जगह ऐसी हैं, जहां पर देश-विदेश से टूरिस्ट यहां का इतिहास जानने आते हैं. महाभारत और रामायण काल की ऐसी ही कई जगह हैं, जिन्हें देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. इन जगहों से जुड़ी हुई कई कहानियां हैं.  आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसकी कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है. हिमाचल प्रदेश में में कांगड़ा जिले में कुछ ऐसे मंदिर हैं, जो साल के आठ महीने पानी में डूबे रहते हैं. ऐसा यहां स्थित पोंग बांध के कारण होता है, जिसका पानी चढ़ता-उतरता रहता है। 



कहां है यह मंदिर?

बाथू मंदिर बाथू की लड़ी के नाम से जाना जाता है जोकि, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित,ज्वाली कस्बे से करीबन आधा घंटे की दूरी पर स्थित है।




‘बाथू की लड़ी’ कहलाते हैं ये मंदिर... 

पोंग बांध के महाराणा प्रताप सागर झील में डूबे इन मंदिरों को बाथू मंदिर के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे ‘बाथू की लड़ी’ कहते हैं। ये मंदिर 70 के दशक में इस बांध के पानी में डूब गए थे।




मंदिर का नाम बाथू कैसे पड़ा?

इस मंदिर की इमारत में लगे पत्थर को बाथू का पत्थर कहा जाता है। बाथू नाम से बनी है और इसी मंदिर की अन्य आठ मंदिर भी है, जिसे दूर से देखने पर एक माला में पिरोया हुआ प्रतीत होता है इसीलिए इस खूबसूरत मंदिर को बाथू की लड़ी (माला) कहा जाता है।



5000 साल है पुराना 

बताया जाता है कि, यह मंदिर करीबन 5000 वर्ष पुराना है, पौराणिक कथायों की माने तो, इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में पांड्वो द्वारा किया गया था। इस मंदिर के निर्माण पांडवों में अपने अग्यात्वास के दौरान शिव की पूजा अर्चना हेतु किया था।




पांडव बनवाना चाहते थे स्वर्ग की सीढ़ी

इन मंदिरों के निर्माण के बारे में अनुश्रुति है कि इन्हें महाभारत काल में पांडवों ने बनवाया था। कहते हैं, पांडवों ने यहां स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनवाने का भी प्रयास किया था, जो कि अधूरी रह गई।






भगवान कृष्ण 6 महीने की एक रात बना दी थी

स्वर्ग के लिए सीढ़ियाँ बनाना कोई मुमकिन काम नहीं था, जिसके बाद उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से गुहार लगाई और और कृष्ण ने छ महीने की एक रात कर दी। लेकिन छ महीने की रात में स्वर्ग की सीढ़ियाँ बनकर तैयार ना हो स्की, आज भी इस मंदिर में स्वर्ग की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ नजर आती है, जिसे लोग आस्था के साथ पूजते हैं।



कई साल तक पानी में डूबा रहा

बताया जाता है कि ,यह मंदिर कई सालों तक पानी में डूबा रहा था, लेकिन इस मंदिर की इमारत आज भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है।



पानी में डूबने के बाद पिलर ही आता है नजर

जब मंदिर आठ महीने तक अपनी में जलमग्न रहता है, तो उस दौरान इस मंदिर का उपरी हिस्सा ही दिखाई देता है। इस मंदिर में कुल 6 मंदिर है, जिसमे पांच छोटे मंदिर है, जोकि एक पंक्ति में निर्मित है, इन मन्दिरों में शेष नाग ,विष्णु भगवान की मूर्तियाँ स्थापित है। और बीच एक मुख्य मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।


मंदिर के अंदर?

आठ महीने तक जलमग्न रहने वाले मंदिर बाथू की लड़ी के अंदर एक पवित्र शिवलिंग हैऔर साथ देवी काली और और भगवान गणेश की भी तस्वीर बनी हुई है।

शिव की मूर्ति को छुए बिना अस्त नहीं होते सूरज

जी हां, इसका रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं लगा सके हैं, लेकिन इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है, सूर्य के अस्त होने से पहले सूर्य की किरणें बाथू मंदिर में विराजमान महादेव के चरण छूती हैं।





शिवरात्रि पर उमड़ता है हुजूम

शिवरात्रि के पावन पर पर्व पर श्रद्धालु दूर दूर से इस मंदिर में भगवान शिव की शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचते हैं इस मंदिर तक पहुँचने के लिए कश्तियों का सहारा लेना होता है




मंदिर के आसपास प्राकृतिक आइलैंड

इस मंदिर के आसपास कुछ छोटे छोटे टापू बने हुए हैं, जिन्हें रेनसर के नाम से जाना जाता है, इसमें रेनसर के फारेस्ट विभाग के कुछ रिजोर्ट्स है, जहां पर्यटकों के रुकने और रहने की उचित व्यवस्था है।




बेहद मनमोहक नजारा यहाँ का 

मंदिर का आसपास का नजारा बेहद मनोरम है,जिसकी ओर कोई भी आकर्षित हो जाये..चारो तरफ पानी और बीच मन्दिरों का समूह बेहद ही खूबसूरत नजर आता है।



कब आये इस मंदिर को देखने

इस मंदिर को देखने का उचित समय मार्च से जून ही सबसे उत्तम है।






कैसे आयें

इस मंदिर तक पहुँचने का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है, गग्गल हवाई अड्डे से इस मंदिर की दूरी की दूरी डेढ़ घंटे की है। पर्यटक रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से ज्वाली पहुंच सकते हैं, जहां से इस मंदिर की दूरी 37 किमी की है।ज्वाली से बाथू की लड़ी पहुँचने के दो रास्ते हैं, एकब बिल्कुल सीधा रास्ता है, जिससे आप बाथू तक आधे घंटे में पहुंच जाएगा, और वहीं दूसरे रास्ते से आपको इस मंदिर तक पहुँचने में करीबन 40 मिनट का वक्त लगेगा।




हर हर महादेव "


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