ऐसा एक रहस्यमयी मंदिर जिसकी छत को आज तक कोई नहीं बनवा पाया
शिकारी माता का यह मंदिर करसोग ,जंजहैली घाटी में एक उच्चे शिखर पर 11000 फ़ीट की उचाई में स्थित है. मगर सबसे हैरत वाली बात ये कि मंदिर पर छत नहीं लग पाई। कहा जाता है कि कई बार मंदिर पर छत लगवाने काम शुरू किया गया। लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। यह माता का चमत्कार है कि आज तक की गई सारी कोशिशें भी शिकारी माता को छत प्रदान न कर सकी |
शिकारी माता का यह मंदिर करसोग ,जंजहैली घाटी में एक उच्चे शिखर पर 11000 फ़ीट की उचाई में स्थित है. मगर सबसे हैरत वाली बात ये कि मंदिर पर छत नहीं लग पाई। कहा जाता है कि कई बार मंदिर पर छत लगवाने काम शुरू किया गया। लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। यह माता का चमत्कार है कि आज तक की गई सारी कोशिशें भी शिकारी माता को छत प्रदान न कर सकी |
पांडवों की बनाई यह मंदिर क्यों है आज तक छत विहीन?
शिकारी देवी का मंदिर की स्थापना कैसे हुई इसके बारे में एक कथा प्रचलित है । कहा जाता है कि जब पांडवो और कौरवो के बीच में जुए का खेल चल रहा था तब एक औरत ने उनको मना किया उसको खेलने से पर होनी को टाला नही जा सका और जुआ खेलने के फलस्वरूप पांडवो को अपना महल और राजपाट छोडकर निर्वासित होना पडा ।जब पांडव अपना वनवास काट रहे तो वो इस क्षेत्र में आये और कुछ समय यहां पर रहे । एक दिन अर्जुन एवं अन्य भाईयो ने एक सुंदर मृग देखा तो उन्होने उसका शिकार करना चाहा पर वो मृग काफी पीछा करने के बाद भी उनके हाथ नही आया ।सारे पांडव उस मृग की चर्चा करने लगे कि वो मृग कहीं मायावी तो नही था कि तभी आकाशवाणी हुई कि मै इस पर्वत पर वास करने वाली शक्ति हूं और मैने पहले भी तुम्हे जुआ खेलते समय सावधान किया था पर तुम नही माने और इसीलिये आज वनवास भोग रहे हो । इस पर पांडवो ने उनसे क्षमा प्रार्थना की तो देवी ने उन्हे बताया कि मै इसी पर्वत पर नवदुर्गा के रूप में विराजमान हूं और यदि तुम मेरी प्रतिमा को निकालकर उसकी स्थापना करोगे तो तुम अपना राज्य पुन पा जाओगे ।पांडवो ने ऐसा ही किया और उन्हे नवदुर्गा की प्रतिमा मिली जिसे पांडवो ने पूरे विधि विधान से स्थापित किया । चूंकि माता मायावी मृग के शिकार के रूप में मिली थी इसलिये माता का नाम शिकारी देवी कहा गया ।
मार्कण्डेय ऋषि जी ने की थी यहाँ तपस्या
मार्कण्डेय ऋषि ने मंदिर वाली जगह पर वर्षो तक माँ दुर्गा की तपश्या करी तथा माँ दुर्गा ने उनके तप से
प्रसन्न होकर उन्हें शक्ति के रूप में दर्शन दिया व यहा स्थापित हुई
प्रसन्न होकर उन्हें शक्ति के रूप में दर्शन दिया व यहा स्थापित हुई
मंदिर की पींडियों में कभी भी बर्फ नही टिकती
यहा सर्दी के मौसम में अत्यधिक बर्फबारी होती है तथा इस मंदिर के आस-पास के सारी पहाड़िया बर्फ की चादर से धक जाती है. इतनी बर्फबारी के बावजूद मुख्य मंदिर में कभी भी बर्फ नही टिकती, स्थानीय लोग इस शिकारी माता का देवीय चमत्कार मानते है
कैसे पड़ा नाम शिकारी देवी
मंदिर के नामकरण के बारे में यहा के लोग बताते है की बहुत सालो पहले यहाँ पर बहुत घना जंगल हुआ करता था तथा यह स्थान बहुत से शिकारी कबीलो का घर हुआ करता था. शिकारी अपने शिकार में सफलता पाने के लिए इस मंदिर में माता की पूजा किया करते थे तथा उन्हें अपने शिकार में सफलता भी मिलने लगी थी जिस कारण उन्होंने इस मंदिर का नाम शिकारी देवी रख दिया. इस मंदिर में माता की प्रतिमा मंदिर के चबूतरे के बीचो-बीच रखी है साथ ही यहा माता चंडी और कमरुनाग देवता की मूर्ति भी स्थापित है. माता के चमत्कारों को सुन दूर-दूर से भक्त यहा आते है तथा अपनी मनोकामनाए माता के समक्ष रखते है, शिकारी माता के द्वार में आने वाले हर व्यक्ति की प्रत्येक इच्छा पूर्ण होती है
क्या है मान्यता
मान्यता है कि आंखों में कोई बीमारी होने पर अगर शिकारी माता को बनावटी आंख चढाई जाए तो आंखों की बीमारी ठीक हो जाती है। लाखों लोग हर साल आखें ठीक होने पर शिकारी माता मंदिर में चांदी की आखें चढ़ाते हैं।
बड़ा देव कमरूनाग रूठ जाएं तो पहुंच जाते हैं शिकारी देवी के पास
मंडी जिला के बड़ा देव कमरूनाग अगर रूठ जाएं तो वे अपने मूल मंदिर से निकल जाते हैं और माता शिकारी देवी के मंदिर में विराजमान हो जाते हैं। देवता के कारदारों और गूरों को देव कमरूनाग को बड़ी मुश्किल से शिकारी देवी मंदिर से मनाकर लाना पड़ता है।
अब तक हजारों बार देव कमरूनाग रूठने पर माता शिकारी देवी के मंदिर में छिप चुके हैं। जब साजे के दिन देव कमरूनाग के मंदिर में कलया नहीं खपती है तो तब देवता के कारदारों को पता चलता है कि देव कमरूनाग मंदिर में नहीं है।फिर शिकारी देवी मंदिर में जाकर विधि विधान से देव कमरूनाग को मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है और देवता को मूल मंदिर में लाया जाता है।
अब तक हजारों बार देव कमरूनाग रूठने पर माता शिकारी देवी के मंदिर में छिप चुके हैं। जब साजे के दिन देव कमरूनाग के मंदिर में कलया नहीं खपती है तो तब देवता के कारदारों को पता चलता है कि देव कमरूनाग मंदिर में नहीं है।फिर शिकारी देवी मंदिर में जाकर विधि विधान से देव कमरूनाग को मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है और देवता को मूल मंदिर में लाया जाता है।
पूर्व सीएम समेत कई नामी हस्तियों की मां के प्रति आस्था
सीएम समेत कई नामी हस्तियों की मां के प्रति आस्था है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह ने अपनी धर्मपत्नी के साथ देवी शिकारी के मंदिर पहुंचकर पुत्र प्राप्ति की मांग की थी। जिसके बाद उन्हें देवी की असीम कृपा से पुत्र प्राप्ति हुई थी।
शिकारी माता मंदिर आने का समय-
शिकारी देवी मंदिर आने का सबसे अच्छा समय गर्मियों का मौसम है
शिकारी माता मंदिर प्रमुख शहरों से मंदिर की दूरी
- मंडी-80KM
- कुल्लू -155KM
- मनाली-200KM
- शिमला-180KM
- धर्मशाला-240KM
- चंडीगढ़ -300KM
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