हिमाचल में हैं यह शक्ितपीठ जहां पूरी होती है हर मनोकामना
हिमाचल प्रदेश के शक्तिपीठों में मंगलवार से चैत्र नवरात्रों का आगाज हो गया। रविवार को पहला नवरात्र होने के साथ ही यहां के शक्ितपीठों में भी आस्था का सैलाब उमड़ना शुरू हो गया। हालांकि पहले दिन भीड़ कुछ कम रही। नवरात्र को लेकर मंदिरों को फूलों से सजाया गया है। हिमाचल प्रदेश में पांच शक्तिपीठ हैं। इनमें मां चामुंडा देवी, मां चिंतपूर्णी देवी, मां बज्रेश्वरी देवी, मां नयना देवी व मां ज्वालाजी के मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों मे भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।
आइए जानें इन शक्तिपीठों के बारे :
मां चिंतपूर्णी मंदिर : चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में स्थित है। यह स्थान 51 शक्ति पीठों में से एक है। यहां पर माता सती के चरण गिरे थे। जब मां सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया। चिंतपूर्णी माता अर्थात चिंता को पूर्ण करने वाली देवी चिंतपूर्णी देवी का यह मंदिर काफी प्राचीन है। भक्तों में माता के चरणों का स्पर्श करने को लेकर अगाध श्रद्धा है।
चिंतपूर्णी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलह सिंगी श्रेणी की पहाड़ी पर छपरोह गांव में स्थित है। अब यह स्थान चिंतपूर्णी के नाम से ही जाना जाता है। कहा जाता है चिंतपूर्णी देवी की खोज भक्त माई दास ने की थी। माई दास पटियाला रियासत के अठरनामी गांव के निवासी थे। वे मां के अनन्य भक्त थे। उनकी चिंता का निवारण माता ने सपने में आकर किया था। चिंतपूर्णी देवी का एक बार दर्शन मात्र करने से सभी चिंताओं से मुक्ति मिलती है इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहते हैं। श्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार जब मां चंडी ने राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त की तो माता की सहायक योगिनियांअजया और विजया की रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर, अपने रक्त से उनकी प्यास बुझाई इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिका देवी पड़ गया।
मां बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा :कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ जिसे नगरकोट धाम भी कहा जाता है, एक ऐसा स्थान हैं, जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख तकलीफ मां की एक झलकभर देखने से दूर हो जाती है। 51 शक्तिपीठों में से यह मां का वह शक्तिपीठ है जहां मां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। माता के इस धाम में मां की पिंडियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। मां के इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। इसलिए मां के वे भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं वह पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और मां का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं।
मान्यता है कि जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर मां के इस दरबार में पहुंचता है उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं। मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की ख्वाहिश हर भक्त के मन में होती है। मंदिर परिसर में ही भगवान भैरव का भी मंदिर है। इस मंदिर में महिलाओं का जाना पूर्ण रूप से वर्जित है। यहां विराजे भगवान भैरव की मूर्ति बड़ी ही खास है। कहते हैं जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। यहां पास में ही बनेर नदी के किनारे पवित्र बाण गंगा भी है। जहां स्नान का विशेष महत्व है।
ज्वालामुखी मंदिर : ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है। यह जिला कांगड़ा में कांगड़ा शहर के दक्षिण में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। इनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग छह लपटें हैं जो अलग अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली अन्नपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्यबासनी, महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर सती के कारण बना था।
बताया जाता है कि देवी सती की यहां जीभ गिरी थी। इस मंदिर में अग्नि की लपटें एक पर्वत से निकलती हैं। अकबर को अपने शासन के समय जब इस मंदिर के बारे में पता चला था तो उसने आग की लपेटों की ऊपर एक नहर बनाकर पानी छोड़ दिया था, फिर भी यह लपेटें नहीं बुझी थी। उसके बाद अकबर ने इन्हें लोहे के बड़े ढक्कन (तवा) से बुझाने का भी प्रयास किया था लेकिन यह उसे फाड़कर भी बाहर आ गई थी। उसके बाद अकबर यहां नंगे पांव आया था और मां से माफी मांगते हुए यहां सोने का छत्र अर्पित किया था।
चामुंडा नंदीकेश्वर धाम : चामुंडा देवी मंदिर भी हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। जिला मुख्यालय धर्मशाला से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बनेर नदी के किनारे स्थित यह मंदिर 700 साल पुराना है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है जो 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर हिंदू देवी चामुंडा जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है।
इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूति करता है। माता का नाम चामुंड़ा पडऩे के पीछे एक कथा प्रचलित है कि मां ने यहां चंड और मुंड नामक दो असुरों का संहार किया था। उन दोनों असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुंडा देवी पड़ गया। यहां साथ ही में एक गुफा के अंदर भगवान शिव भी नंदीकेश्वर के नाम से विराजमान हैं। ऐसे में इस स्थान को चामुंडा नंदीकेशवर धाम भी कहा जाता है।
मां नयना देवी : नयना देवी माता का मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में स्थित है। इस स्थान पर माता सती के दोनों नेत्र गिरे थे। नयना देवी का मंदिर भी प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। हिमाचल प्रदेश में स्थित यह स्थान पंजाब राज्य की सीमा के समीप है।
मंदिर में माता भगवती नयना देवी के दर्शन पिंडी के रूप में होते हैं। नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है। लाखों भक्त यहां आकर मां के दर्शन करते हैं व अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस स्थान तक आनंदपुर साहिब और ऊना से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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