KATHGARH MAHADEV

यहां है अदभुत आधा शिव आधा पार्वती रूप शिवलिंग, दो भागों का शिवरात्रि पर हो जाता है ‘पूर्ण-मिलन’

हिमाचल प्रदेश की भूमि को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर बहुत से आस्था के केंद्र विद्यमान हैं। आपने अधिकतर जगह भगवान शिव की पूर्ण प्रतिमा भी पूजा होते हुए देखी होगी, लेकिन देश में एक ऐसी जगह जहां दो भागों में बंटे शिवलिंग की पूजा होती है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में काठगढ़ महादेव का मंदिर स्थित है





इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहते हैं

इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहते हैं। माना जाता है कि मां पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर शिवलिंग के मध्य का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में यह स्वरूप दो भागों में बट जाता है और शीत ऋतु में फिर से एक रूप धारण कर लेता है। मान्यता है कि ऐसा ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तित होने के अनुसार होता है।

शिवरात्रि पर होता है दोनों का ‘मिलन’ 

चूंकि शिव का वह दिव्य लिंग शिवरात्रि को प्रगट हुआ था,इसलिए लोक मान्यता है कि काठगढ महादेव शिवलिंग के दो भाग भी चन्द्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं। शिवरात्रि का दिन इनका मिलन माना जाता है।दो भागों में विभाजित आदि शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है । यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय है तथा काले-भूरे रंग का है। शिव रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई 7-8 फुट है जबकि पार्वती के रूप में अराध्य हिस्सा 5-6 फुट ऊंचा है।






शिव पुराण में वर्णित कथा


राण की विधेश्वर संहिता के अनुसार पद्म कल्प के प्रारंभ में एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता का विवाद उत्पन्न हो गया और दोनों दिव्यास्त्र लेकर युद्ध हेतु उन्मुख हो उठे। यह भयंकर स्थिति देख शिव सहसा वहां आदि अनंत ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए, जिससे दोनों देवताओं के दिव्यास्त्र शांत हो गए। ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस स्तंभ के आदि-अंत का मूल जानने के लिए जुट गए। विष्णु शुक्र का रूप धरकर पाताल गए, मगर अंत न पा सके। ब्रह्मा आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु के पास पहुंचे और बोले- ‘मैं स्तंभ का अंत खोज आया हूं, जिसके ऊपर यह केतकी का फूल है।’ ब्रह्मा का यह छल देखकर शंकर वहां प्रकट हो गए और विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए। तब शंकर ने कहा कि आप दोनों समान हैं। यही अग्नि तुल्य स्तंभ, काठगढ़ के रूप में जाना जाने लगा। ईशान संहिता के अनुसार इस शिवलिंग का प्रादुर्भाव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को हुआ था।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


विश्वविजेता सिकंदर ईसा से 326 वर्ष पूर्व जब पंजाब पहुंचा, तो प्रवेश से पूर्व मीरथल नामक गांव में पांच हजार सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम की सलाह दी। इस स्थान पर उसने देखा कि एक फकीर शिवलिंग की में पूजा व्यस्त था।




सिकंदर ने करवाया चारदीवारी का निर्माण

उसने फकीर से कहा- ‘आप मेरे साथ यूनान चलें। मैं आपको दुनिया का हर ऐश्वर्य दूंगा।’ फकीर ने सिकंदर की बात को अनसुना करते हुए कहा- ‘आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य का प्रकाश मेरे तक आने दें।’ फकीर की इस बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर काठगढ़ महादेव का मंदिर बनाने के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी बनवाई। इस चारदीवारी के ब्यास नदी की ओर अष्टकोणीय चबूतरे बनवाए, जो आज भी यहां हैं।

भरत की प्रिय पूजा-स्थली
मान्यता है, त्रेता युग में भगवान राम के भाई भरत जब भी अपने ननिहाल कैकेय देश (कश्मीर) जाते थे, तो काठगढ़ में शिवलिंग की पूजा किया करते थे।

शिवरात्रि के त्यौहार का है विशेष महत्व 

शिवरात्रि के त्यौहार पर प्रत्येक वर्ष यहां पर तीन दिवसीय भारी मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप श्री संगम के दर्शन से मानव जीवन में आने वाले सभी पारिवारिक और मानसिक दु:खों का अंत हो जाता है। इसके अलावा सावन के महीने में भी



"हर हर काठगढ़ महादेव"



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