ऐसा एक मंदिर,जहां मरने के बाद सबसे पहले पहुंचती है आत्मा
यमराज का अनोखा मंदिर जिसके बारे में शायद आप नहीं जानते
दीपावली के एक दिन पहले से यमराज की पूजा अर्चना की जाती है। नरक चतुर्दशी के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित बताया जाता है। दरअसल, इस दिन यमराज की पूजा करने वाले परिवार में कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। धर्म के जानकार मानते हैं कि मरने के बाद एक न एक दिन मानव को यमराज के पास जाना ही होता है।
क्या आपको पता है कि आप यमराज तक जीवित रहकर भी पहुंच सकते हैं।
लेकिन क्या आपको पता है कि आप यमराज तक आप जीवित रहकर भी पहुंच सकते हैं। मातलब यह है कि भगवान यमराज के नाम से एक मंदिर है। जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। कहा जाता है कि उसमें बहुत पुरानी प्रथाएं आज भी कायम है।यमराज का यह प्रचलित मंदिर दिल्ली से पांच सौ किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
संसार में यह इकलौता मंदिर है जो धर्मराज को समर्पित है।
यहां पर एक ऐसा मंदिर है जो घर की तरह दिखाई देता है। इस मंदिर के पास पहुंच कर भी बहुत से लोग मंदिर में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। बहुत से लोग मंदिर को बाहर से प्रणाम करके चले आते हैं। इसका कारण यह है कि, इस मंदिर में धर्मराज यानी यमराज रहते हैं। संसार में यह इकलौता मंदिर है जो धर्मराज को समर्पित है। यम देवता की पूजा करने से आकाल मृत्यु का भय नही रहता . नरक चतुर्दशी – जो दिवाली से एक दिन पहले आती है, को यमराज की पूजा होती है !
यहाँ लगती है यमराज की अदालत !
इस मंदिर से जुडी मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मो का पूरा ब्योरा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है।
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