MAHUNAG DEVTA

महाभारत के महायोद्धा महुनाग देवता को दानवीर कर्ण का अवतार माना जाता है

वैसे तो हिमाचल प्रदेश में ही महुनाग देवता के बहुत सारे मंदिर हैं, जिनमे इसे ही मूल महुनाग का ख़िताब हासिल है. दो और मंदिर भी काफी प्रसिद्ध व् चर्चित है, जिनमे से एक नालदेहरा से आगे बल्देंया में दांई ओर पहाड़ी के शिखर पर स्थित है, और दूसरा शिमला में शोघी से पहले बाँई ओर जो सड़क SSB कैम्प को जाती है, उससे कुछ आगे जाकर स्थापित है. हम बात कर रहे हैं मूल महुनाग मंदिर की, यहाँ पहुँचने के लिए शिमला से नालदेहरा, बसन्तपुर, ततापानी, माहोटा, अलसिंडी, चुराग होते हुए खील-कुफरी पहुंचना होता है. यहाँ से दांई और एक सड़क जाती है जो महुनाग मंदिर तक 12 km लम्बी है, यह सड़क यही समाप्त हो जाती है। 




कहाँ है ये अनोखा मंदिर

महुनाग मंदिर, मंडी जिला के बखारी कोठी नामक स्थान पर स्थित है. यह स्थान शिमला से 93 km, करसोग से 35 km तथा चुराग से 14 km की दुरी पर समुद्र तल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर विद्यमान है।  





एक ऐतिहासिक मंदिर 

मंदिर पहाड़ी वास्तुकला की शैली को प्रदर्शित करता है, पहाड़ी भारत के उत्तर की ओर हिमालय की तलहटी में रहने वाले लोगों के समूहों की एक व्यापक सामान्यीकरण के रूप में एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यदि ऐतिहासिक रिकॉर्ड पर विश्वास करें तो यह मंदिर 1664 में राजा श्याम सेन द्वारा निर्मित किया गया था।






जानें कैसे हुई भगवान् महुनाग जी की उत्पत्ति

यहाँ महुनाग देवता को दानवीर कर्ण का अवतार माना जाता है. महुनाग की उत्पत्ति यहाँ के एक गाँव शैन्दल में हुई थी. जब एक किसान खेत में हल जोत रहा था, तो अचानक एक जगह आ कर हल जमीन में अटक गया, किसान के बहुत प्रयत्न करने पर भी जब हल बाहर नहीं निकला तो मिट्टी हटा कर देखा गया. तब पता चला कि यहाँ एक मोहरा (पत्थर की मूर्ति) जमीदोज है. इसे बाहर निकालने का प्रयास हुआ मगर जैसे ही मोहरा बाहर आया तो यह वहाँ से उड़ गया और बखारी में स्थापित हो गया. यह घटना सदियों पुरानी है, जो एक अलिखित इतिहास का हिस्सा है, तथा जनश्रुति पर आधारित है.





दानवीर कर्ण की एक छोटी सी कहानी 


महाभारत युद्ध के दौरान जब कर्ण मरनासन्न अवस्था में युद्ध भूमि पर पड़ा था, तो श्री कृष्ण ने पाण्डव सभा में उदास स्वर में कहा कि, वो देखो दानशीलता का सूर्य अस्त हो रहा है. कर्ण की प्रशंसा सुन कर अर्जुन को अच्छा नहीं लगा. उसनेश्री कृष्ण से कहा कि धर्मराज युधिष्ठिर में ऐसी कौन सी कमी है, जो आप दुश्मन खेमे के कर्ण की प्रशंसा कर रहे हैं.ये सुन कर श्री कृष्ण ने अर्जुन का संदेह मिटाने के लिए एक लीला रची और एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धर कर महायोद्धा कर्ण के पास जाने का विचार किया. तथा अर्जुन से कहा कि वह दूर रह कर ही सारा क्रियाकलाप देखे. यह कह कर श्री कृष्ण ने ब्राह्मण वेशधारण किया. और रक्तरंजित धुल से भरे कर्ण के घायल शारीर के पास जा कर कर्ण से प्रार्थना भरे शब्दों में कहा. “हे महा दानवीर कर्ण में आपका यश सुन कर आपके पास कुछ दान की अपेक्षा लेकर उपस्थित हुआ हूँ. कृपया मेरी सहयता कीजिए” ब्राह्मण के शब्द सुन कर कर्ण ने अपनी असमर्थता जाहिर की, मगर फिर सोचा कि ब्राह्मण देवता नाराज न हो जाए.यही सोच कर पास में पड़ा शस्त्र उठाया. और खुद के जबड़े पर वॉर कर, सोने का दांत निकाल कर भेंट कर दिया. मगर बूढ़े ब्राह्मण ने ये कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि ये जूठा है. अब कर्ण ने वरुण अस्त्र का प्रयोग कर पानी उत्पन किया.फिर जूठे दांत को धो कर प्रस्तुत किया. ये सब देख कर भगवान कृष्ण ने कर्ण को दर्शन दिए. और इस प्रकार कर्ण को मोक्ष प्राप्ति हुई तथा अर्जुन की शंका का समाधान हुआ





यहाँ ठहरने के लिए महुनाग मंदिर की धर्मशाला के अलावा PWD का विश्रामगृह भी है। यहाँ पूरा साल भर कभी भी जाया जा सकता है। 



"जय महुनाग देवता जी "


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