BABA BALAK NATH JI-DEOTSIDH


जानिए, बाबा बालक नाथ जी की दिव्य शक्तियों और उनके धाम की कहानी



हिमाचल प्रदेश की मूल धार्मिक प्रवृति व संस्कृति में उच्च भाव केंद्रों के रूप में अनेक सिद्ध तीर्थ प्रतिष्ठित हैं। इनमें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत का दिव्य सिद्ध पीठ हैं। हमीरपुर जिला के धौलागिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की पावन गुफा स्थापित है। सिद्ध पीठ में देश व विदेश से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्वालु बाबा जी का आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं





1987 में हुआ था ट्रस्ट का गठन 

16 जनवरी, 1987 को महंत 1008 शिवगिरी जी महाराज के आग्रह व सुझाव पर बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध में एक ट्रस्ट का गठन किया गया। इसके बाद बाबा जी की गुफा में अभूतपूर्व चढ़ावे के चलते इस सिद्ध स्थल के विकास कार्यों में बढ़ोतरी हुई। बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत के विख्यात सिद्ध पीठों में से एक हैंं, जो चिरकाल से ही सिद्ध बाबा बालक नाथ के पुण्य प्रतापों के बल पर निरंतर महिमावान हैं।

बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। शुकदेव मुनि का जब जन्म हुआ, उसी समय 84 सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। इनमें सर्वोच्च सिद्ध बाबा बालक नाथ भी एक हुए। बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। ऐतिहासिक संदर्भ में नवनाथों और 84 सिद्धों का समय आठवीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है। चंबा के राजा साहिल वर्मन के राज्यकाल जोकि दसवीं शताब्दीं का है, के समय 84 सिद्ध भरमौर गए थे। वे जिस स्थान पर रुके थे, वह स्थान आज भी भरमौर चौरासी के नाम से विख्यात है। नौवीं शताब्दी ही ङ्क्षहदी साहित्य में सरहपा, शहपा, लूईपा आदि कुछ सिद्ध संतों की वाणियां मिलती हैं।
                                                                      


 मुख्य मंदिर

बाबा बालकनाथ जी की कहानी

बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान में कल युग और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसे “सत युग” में “ स्कन्द ”, “ त्रेता युग” में “ कौल” और “ द्वापर युग” में “महाकौल” के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बडे भक्त कहलाए। द्वापर युग में, ”महाकौल” जिस समय “कैलाश पर्वत” जा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया।कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरातकाठियाबाद में “देव” के नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजी ‘आध्यात्म’ में लीन रहते थे। यह देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया, परन्तु बाबाजी उनके प्रस्ताव को अस्विकार करके और घर परिवार को छोड़ कर ‘ परम सिद्धी ’ की राह पर निकल पड़े। और एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में उनका सामना “स्वामी दत्तात्रेय” से हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से “ सिद्ध” की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और “सिद्ध” बने। तभी से उन्हें “ बाबा बालकनाथ जी” कहा जाने लगा।





बाबाजी का नामकरण 

बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान में कल युग और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसेसत युगमेंस्कन्द ”, “ त्रेता युगमेंकौलऔरद्वापर युगमेंमहाकौलके नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बडे भक्त कहलाए। द्वापर युग में, ”महाकौलजिस समयकैलाश पर्वतजा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया।

कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरातकाठियाबाद मेंदेवके नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजीआध्यात्ममें लीन रहते थे। यह देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया, परन्तु बाबाजी उनके प्रस्ताव को अस्विकार करके और घर परिवार को छोड़ करपरम सिद्धीकी राह पर निकल पड़े। और एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में उनका सामनास्वामी दत्तात्रेयसे हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय सेसिद्धकी बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी औरसिद्धबने। तभी से उन्हेंबाबा बालकनाथ जीकहा जाने लगा।


                                         
बाबा का समाधि रूप


शाहतलाई में भी है बाबा जी का पवित्र धाम 

बाबाजी के दो पृथ्क साक्ष्य अभी भी उप्लब्ध हैं जो कि उनकी उपस्तिथि के अभी भी प्रमाण हैं जिन में से एक हैगरुन का पेड़यह पेड़ अभी भी शाहतलाई में मौजूद है, इसी पेड़ के नीचे बाबाजी तपस्या किया करते थे। दूसरा प्रमाण एक पुराना पोलिस स्टेशन है, जो किबड़सरमें स्थित है जहाँ पर उन गायों को रखा गया था जिन्होंने सभी खेतों की फसल खराब कर दी थी, जिसकी कहानी इस तरह से है कि, एक महिला जिसका नामरत्नोथा, ने बाबाजी को अपनी गायों की रखवाली के लिए रखा था जिसके बदले में रत्नो बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी, ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार जब रत्नो बाबाजी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं। रत्नो का इतना ही कहना था कि बाबाजी ने पेड़ के तने से रोटी और ज़मीन से लस्सी को उत्त्पन्न कर दिया। बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्तगर्भगुफामें प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहाँ पर बाबाजी तपस्या करते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे।





बाबा बालकनाथ मंदिर की गुफा में घुसकर महिला ने की थी पूजा

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के द्वैत सिद्ध में बाबा बालकनाथ मंदिर की गुफा में एक महिला श्रद्धालु अपनी दो बेटियों के साथ पहुंची और गुफा में महिलाओं के नहीं प्रवेश करने की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए पूजा की। उत्तर भारत के इस प्रसिद्ध मंदिर में गुफा के अंदर तक घुसकर महिलाओं के न जाने की वर्षों की पुरानी परंपरा को तोड़ा।भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिकेय कुंवारे माने जाते हैं और बाबा बालकनाथ को उनका अवतार माना जाता है, इसलिए महिलाएं गुफा में कुछ दूरी से ही पूजा करती हैं, लेकिन मंदिर में बाबा की गुफा तक पहली बार किसी महिला ने प्रवेश कर माथा टेक कर सबको हैरानी में डाल दिया।भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिकेय कुंवारे माने जाते हैं और बाबा बालकनाथ को उनका अवतार माना जाता है, इसलिए महिलाएं गुफा में कुछ दूरी से ही पूजा करती हैं, लेकिन मंदिर में बाबा की गुफा तक पहली बार किसी महिला ने प्रवेश कर माथा टेक कर सबको हैरानी में डाल दिया।हालांकि मंदिर प्रशासन ने 16 अप्रैल को स्पष्ट किया था कि गुफा में प्रवेश करने को लेकर महिलाओं पर प्रतिबंध नहीं है, इसके बावजूद महिलाएं पुरानी परंपरा को ध्यान में रखते हुए गुफा में नहीं घुसती हैं। अपनी दो बेटियों के साथ महिला ने कल पुजारियों की मौजूदगी में गुफा में प्रवेश किया और वहां पूजा अर्चना की। मंदिर पर राज्य सरकार का नियंत्रण है। मंदिर के पदाधिकारियों ने इस घटना की पुष्टि की।जब वह गुफा की ओर बढऩे लगी तो पहले उसे वहां तैनात महिला गृह रक्षक ने रोकने की कोशिश की, लेकिन महिला ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गई। इसके बाद उसे कुछ पुजारियों ने पुरानी परंपरा की ओर ध्यान दिलाया, लेकिन महिला बेबाकी अपनी 2 बेटियों सहित गुफा में जा पहुंची और माथा टेक कर वापस लौट गई।महिला लदरौर स्कूल में बतौर बायोलॉजी की प्रवक्ता के रूप में नियुक्त है। उनके ऐसा करने से मंदिर परिसर में ये खबर आग की तरह फैल गई। सब लोग हतप्रभ होकर चर्चा करने लगे। इस विषय में मंदिर अधिकारी ईश्वर दास ने माना कि एक महिला ने मंदिर की गुफा में जाकर माथा टेका है। इस पर कोई रोक-टोक नहीं थी, बल्कि अब तक महिलाओं के माथा न टेकने की परंपरा चली आ रही थी।


बाबा का मनपसंद पकवान 

बाबा जी का मनपसंद पकवान रोट है क्योकि माता रत्नो बाबा जी को रोट और लस्सी लेकर जाती थी जब बाबा माता रत्नो के यहाँ गाये चराने की नौकरी करते थे |


रोट  बनाता कारीगर

बाबा बालक नाथ के दरबार में पहुंचा गया था मोर

उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सिद्धपीठ मंदिर बाबा बालक नाथ मंदिर में एक मोर के पहुंचने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। यह मोर मंदिर परिसर में पहुंचा और काफी देर तक यहां रहा। मोर को बाबा की पवित्र गुफा के पास देखकर यहां पूजा-अर्चना करने आए श्रद्धालु हैरान हो गए।मोर को मंदिर परिसर में पाकर मंदिर के कर्मचारी उसे बाबा की पवित्र गुफा के पास ले आए। हालांकि यह मामला 15 जून का है। पवित्र गुफा के पास टहलने के बाद मंदिर के कर्मचारी मोर को पास के जंगल में छोड़ आए। बाबा की पवित्र गुफा के पास पहुंचने पर श्रद्धालुओं ने मोबाइल से फोटो खींचना शुरू कर दिया।कुछ लोगों ने मंदिर में मोरी की फोटो सोशल साइट व फेसबुक पर भी खूब शेयर की है।




हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध गुफा-बाबा के इस मंदिर को “गुफा सिद्ध बाबा बालकनाथ” के नाम से जाना जाता है जो हमीरपुर जिले के दयोटसिद्ध में स्थित है। ये स्थान हिमाचल प्रदेश राज्य के हमीरपुर जिले के दक्षिण में दयोटसिद्ध जंगल में स्थित है। ये मंदिर धौलगिरि पर्वत पर शाहतलाई से 4 कम की दुरी पर स्थित है। बाबा का ये मंदिर बहुत बड़ा है लेकिन मंदिर की मुख्य गर्भगुफा के अंदर महिलाओ का प्रवेश निषेध है। कहा जाता है बाबा बालकनाथ भगवान शिव के पुत्र है।
पंजाब का मंदिर-पंजाब में बाबा बालक नाथ मंदिर होशियारपुर जिले के भनोवल में स्थित है।
उत्तर प्रदेश का मंदिर-उत्तर प्रदेश के नॉएडा सेक्टर 71 में बाबा का एक मंदिर है। इसके अलावा ग़ाज़ियाबाद में भी बाबा बालक नाथ मंदिर मंदिर है।



दूसरे देशो में भी बाबा बालकनाथ जी के कई मंदिर है

                                         
कनाडा टोरंटो  में बाबा बालक नाथ जी का मंदिर 



मार्च में संक्रांति वाले दिन से यहां वार्षिक मेला प्रारंभ होता है  

वर्तमान समय में महंत राजिंद्र गिरि जी महाराज ही सेवा कर रहे हैं। लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाए वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। 14 मार्च संक्रांति वाले दिन से यहां वार्षिक मेला प्रारंभ हो रहा है। 



जय बाबा बालक नाथ जी "



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