MAA CHAMUNDA DEVI

चंड-मुंड को दंड देने के लिए प्रकट हुईं थीं मां चामुण्डा


भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश जिसको देव भूमी के नाम से भी जाना जाता है के जिला कांगडा से 24 किलोमीटर की दूरी तथा प्रमुख शहर धर्मशाला से 15 किलोमीटर की दूरी पर मां चामुण्डा देवी का मंदिर स्थित है। श्रीमार्कण्डेयपुराण में देवी महात्म्य के अंतर्गत राक्षसों के विनाश के लिए मां दुर्गा के जिन अवतारों का वर्णन मिलता है, वे संख्या में अनंत हैं। ऐसा माना जा सकता है कि उस काल में असुरों की संख्या अनंत और बल अपरिमित था। यही कारण है कि देवों को दुष्टों के त्राण से मुक्त करने के लिए आदिशक्ति अनेकानेक रूपों में प्रकट हुईं। इस संपूर्ण कथाक्रम में धूम्रलोचन, चंड-मुंड, रक्तबीज और शुंभ-निशुंभ जैसे महाबली और मायावी असुरों का विनाश देवी के विभिन्न रूपों द्वारा किया गया था।






51 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक है,700 साल पुराना है मंदिर 
ये मंदिर कोई 700 साल पुराना है जो  घने जंगलों और बनेर नदी के पास स्थित है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्त्व है जो 51 सिद्ध  शक्ति पीठों में से एक है। ये मंदिर हिन्दू  देवी चामुंडा जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है को समर्पित है। इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूती करता है। 



माँ चामुंडा जी को नंदकेश्वर धाम से जाना जाता है

यह शिव और शक्ति का स्थान है जिसको चामुंडा नंदकेश्वर धाम से जाना जाता है। बाण गंगा नदी के तट पर स्थित यह उग्र सिद्धपीठ प्राचीन काल से ही तप: सम्भूत योगियो, साधको व तांत्रिको के लिए एकांत, शांत और प्राकृतिक शोभा से युक्त स्थान है। बाइस ग्रामो की श्मशान भूमि महाकाली चामुण्डा के रूप में मंत्र विद्या और सिद्धि का वरदायी क्षेत्र माना गया है। 







चामुण्डा माँ जी की पौराणिक कथा 


मां चामुण्डा देवी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक समय धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। इन दोनो राक्षसो ने स्वर्ग लोक और देव लोक को भी पराजित कर धरती और स्वर्ग वासियो पर अत्याचार करने लगे देवता मारे मारे इधर उधर भटकने लगे। जिसके कारण मनुष्य और देवतागण दोनो ही बहुत परेशान थे। इस समस्या के निवारण हेतु वे भगवान शिव की शरण में गए और भगवान शिव से राक्षसो से रक्षा विनती करने लगे। तब भगवान शंकर ने उनहे देवी दुर्गा मां की अराधना कर प्रसन्न करने की युक्ति सुझाई। तब तब मनुष्य और देवताओ ने देवी मां दुर्गा की अराधना कर देवी मां को प्रसन्न किया। तब देवी दुर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही उन दोनो दैत्यो से उनकी रक्षा करेगी। इसके पश्चात देवी दुर्गा ने कोशिकी नाम से एक सुंदर स्त्री के रूप में अवतार ग्रहण किया। इसी अवतार के साथ मा दुर्गा का एक नाम कोशिकी पड गया। माता कोशिकी को शुम्भ और निशुम्भ राक्षसो के दूतो ने देख लिया और जाकर अपने महाराज शुम्भ और निशुम्भ से कहा महाराज आप तीनो लोको के राजा है। आपके यहा सभी अमूल्य रत्न सुशोभित है। यहा तक के इंद्र का ऐरावत हाथी भी आपके पास है। इस कारण आपके पास ऐसी सुंदर और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो तीनो लोको में सबसे अधिक सुंदर हो। अपने दूतो द्वारा मां कोशिकी के रूप की व्याखना सुनकर शुम्भ और निशुम्भ ने इस सुंदर स्त्री को अपनी रानी बनाने का मन बना लिया। और अपना एक दूत के हाथ संदेशा भेजा कि उस स्त्री से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनो लोको के राजा है। बडे बलशाली और पराक्रमी है और वो तुम्है अपनी रानी बनाना चाहते है। दूत ने जाकर शुम्भ और निशुम्भ राक्षसो का प्रस्ताव जाकर मां कोशिकी को सुनाया। शुम्भ और निशुम्भ का प्रस्ताव सुनकर माता कोशिकी ने उनके सामने भी एक प्रस्ताव रखा और कहा कि – मै प्रण ले चूकि हूँ कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में पराजित करेगा मै उसी व्यक्ति से विवाह करूंगी। माता के प्रस्ताव को जब दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को सुनाया तो वह इसे अपने बल और पराक्रम का अपमान जान क्रोध से आग बबुला हो गए और कहा उस तुछ नारी का यह दुस्साहस की वह युद्ध के लिए तीनो लोको के राजा को ललकारे। गुस्से से क्रोधित शुम्भ और निशुम्भ ने अपने दो बलशाली राक्षसो चण्ड और मुण्ड को माता कोशिकी को बंदी बनाकर अपने समक्ष पेश करने का आदेश दिया। चण्ड और मुण्ड राक्षस जब देवी को बंदी बनाने पहुंचे तो तब देवी मां ने अपना काली रूप धारण कर चण्ड और मुण्ड का सर धड से अलग कर यमलोक पहुंचा दिया। इन दोनो राक्षसो के वध के कारण ही माता का नाम चामुण्डा पड गया



यहाँ का माहौल बेहद शांतिप्रिय 

इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूती करता है। यहां पर प्रायः बहुत सारे श्रद्धालुओं को योग और समाधी में तल्लीन देखा जा सकता है।









मंदिर परिसर में ही है एक छोटा सा तालाब 

इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूती करता है। यहां पर प्रायः बहुत सारे श्रद्धालुओं को योग और समाधी में तल्लीन देखा जा सकता है। यहां  घूमने आने वाले पर्यटकों को मंदिर परिसर में ही एक छोटा सा तालाब मिलेगा। जिसके पानी को बहुत ही शुद्ध माना जाता है। 






धौलाधार पर भी विराजमान हैं ...मां हिमानी चामुंडा

जिला कांगड़ा में आदि हिमानी चामुंडा नंदिकेश्वर धाम में मां भगवती शक्ति रूप में विराजमान है। आदि हिमानी चामुंडा धाम पौराणिक काल से शिव शक्ति का अदभुत सिद्ध वरदान देने वाले स्थल के रूप में जाना जाता है। इसी स्थान पर असुर जालंधर और महादेव के बीच युद्ध के दौरान भगवती चामुंडा को अधिष्ठात्री देवी और रुद्रत्व प्राप्त हुआ था। इस कारण यह क्षेत्र रुद्र चामुंडा के रूप में भी ख्याति प्राप्त है। 





चामुण्डा देवी के अन्य दर्शनीय स्थल



नंदिकेश्वर
पौराणिक मान्यता के अनुसार जहा जहा देवी सती के अंग गिरे थे वहा वहा देवी किसी न किसी रूप में स्थित और देवी के साथ वहा वहा एक एक भैरव अपने अपने रूपो में स्थित है। यहा देवी के साथ भैरव नंदिकेश्वर के रूप में स्थित है। देवी के साथ साथ भैरव की आराधना का बहुत बडा महत्व माना जाता है।
संजय घाट
माता चामुण्डा और नंदिकेश्वर महादेव के मंदिर के अतिरिक्त इस तीर्थ पर नवनिर्मित संजय घाट भी है। बाणगंगा की जल धारा को नियंत्रित करके उसे घाट की सीढियो के मध्य से प्रवाहित किया गया है। ताकि इस तीर्थ पर आने वाले यात्रियो को स्नान की उत्तम सुविधा प्राप्त हो सके। इस विशाल घाट के दोनो ओर सात सात लम्बी सीढिया है। यहा पुरूषो और स्त्रियो के लिए स्नान करने का अलग अलग प्रबंध है। इस बाण गंगा के पवित्र जल में स्नान करके देवी दर्शन करने का महत्व माना जाता है।
पुस्तकालय
चामुण्डा देवी मंदिर के करीब स्थित इस पुस्तकालय में आपको कई पुरानी पांडुलिपियां, ज्योतिष किताबे, मंत्र किताबे, वेद, पुराण और रामायण जैसी धार्मिक पुस्तके देखने को मिल जाएंगी






चामुण्डा देवी मंदिर जाने के रास्ते :


हवाई यात्रा द्वारा:

चामुण्डा देवी मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि मंदिर से 28 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। इसके बाद आप कार बस से मंदिर तक की यात्रा कर सकते है |
सड़क मार्ग:

सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटको के लिए हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग कि बस सेवा है | धर्मशाला जगह से 15 कि॰मी॰ और ज्वालामुखी से 55 कि॰मी॰ की दूरी पर मंदिर स्थित है। यहा से बस कार से आप मंदिर जा सकते है |

रेल मार्ग
मराण्डा पालमपुर जेसी जगह 30 किमी की दुरी पर है | पठानकोट सभी प्रमुख राज्यो से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है ।




                      " जय माँ चामुण्डा "